
आज मैं आपके सामने तरुण को लेकर आया हूँ। तरुण भैय्या आपका स्वागत है ...मेरे ब्लॉग पर.......
मेरे लिए क्या लाये हो भाई ......?और जल्दी से हमें बताओ!
मेरे लिए क्या लाये हो भाई ......?और जल्दी से हमें बताओ!
"चंदा मामा जल्दी आओ ....
वरना हम आते हैं ,
दूरी का अब प्रश्न नहीं है...
रोकेट हमीं बनाते हैं।"
"बूँद - बूँद के संग्रह से....
सागर भी भर जाए,
तिनका- तिनका जोड़कर......
चिड़िया महल बनाये।"
बहुत अच्छे तरुण भैय्या, आपने बहुत ही प्यारी कविता लाई है ....
आपका बहुत -बहुत शुक्रिया .....
कृपया आप अपने बारे में भी बताइये।
......मैं तरुण चंद्राकर , कक्षा चौथी का छात्र हूँ .......मैं एक बहुत ही प्यारा लड़का हूँ ,...मेरी एक छोटी बहन भी है.
मेरे मम्मी -पापा दोनों मेहनत कर कमाते हैं और हमें पढ़ाते हैं.....
मम्मी - पापा दोनों खाना बनाने का काम करते हैं।
.....दोस्त तुमको पता है .....
एक बार जब मुझे किसी काम से बाज़ार भेजा गया था ....
तो न जब मैं लौट रहा था तो रास्ते में एक पुलिस की गाड़ी ने मुझे रोक लिया और पुलिस स्टेशन ले गयी .....
मेरे साथ और भी बच्चे थे .....
मैं सबसे छोटा था .....
वहां मेरे हाथ में खूब डंडे मारे गए ........
और पूछा "कहाँ रखा है सामान? चल तेरे घर में दिखा क्या-क्या सामान है? ........"
मेरा हाथ सूज गया था ......मैं बहुत रोया ....
मेरी मम्मी बहुत परेशान हो गई , जब मुझे पुलिस जेल ले गई थी .......
दो दिन मुझे पुलिस स्टेशन में रखा गया ....
जब मेरी मम्मी उन पर गुस्सा हुई और कहा -
"देखो इन छोटे बच्चों को क्या लगता है ? ये सिलेंडर उठा कर ले जा सकते हैं ?...और क्या ये सोना चोरी कर सकते हैं? लॉकर तोड़कर, जिसने यह किया है पकड़ में नहीं आया तो .....बच्चों को पकड़ लिया .....
ये भी न सोचा कि इन पर क्या असर होगा ?"
तब उन्होंने हमें छोड़ा।
दरअसल हमारे मोहल्ले में एक चोरी हुई थी ना ...बड़ी चोरी हुई थी ।
कुछ लोगों ने शायद मेरा भी नाम लिया था , ..क्यों?
....एक बार मेरे पिताजी का किसी के साथ कुछ झगड़ा हुआ था ना तो उनको २ - ३ महीने की जेल हो गई थी .....और ना जब चाहे पुलिस उनको ले जाती है ......
और क्या बताऊँ दोस्त ...तब से लोग हमें शक की नज़र से देखते हैं ....
मैं अभी कितना छोटा हूँ....
किंतु जब पुलिस मुझे पकड़ कर ले गई मोहल्ले वालों के सामने .....
तब से ये बोलतें है मुझे ...
"ये लड़का तो ऐसा ही है ..."
मेरे बालमन पर बहुत ही बुरा असर पड़ा है दोस्त.....
लेकिन अब तुम मिल गए हो ना मेरे प्यारे दोस्त तो मुझे अब बहुत ही अच्छा लग रहा है .....
दोस्त ये मेरी छोटी बहन हिमांशी है यह भी कुछ कविता लाई है .....
सुनाओ हिमांशी .....
ये भी न सोचा कि इन पर क्या असर होगा ?"
तब उन्होंने हमें छोड़ा।
दरअसल हमारे मोहल्ले में एक चोरी हुई थी ना ...बड़ी चोरी हुई थी ।
कुछ लोगों ने शायद मेरा भी नाम लिया था , ..क्यों?
....एक बार मेरे पिताजी का किसी के साथ कुछ झगड़ा हुआ था ना तो उनको २ - ३ महीने की जेल हो गई थी .....और ना जब चाहे पुलिस उनको ले जाती है ......
और क्या बताऊँ दोस्त ...तब से लोग हमें शक की नज़र से देखते हैं ....
मैं अभी कितना छोटा हूँ....
किंतु जब पुलिस मुझे पकड़ कर ले गई मोहल्ले वालों के सामने .....
तब से ये बोलतें है मुझे ...
"ये लड़का तो ऐसा ही है ..."
मेरे बालमन पर बहुत ही बुरा असर पड़ा है दोस्त.....
लेकिन अब तुम मिल गए हो ना मेरे प्यारे दोस्त तो मुझे अब बहुत ही अच्छा लग रहा है .....
दोस्त ये मेरी छोटी बहन हिमांशी है यह भी कुछ कविता लाई है .....
सुनाओ हिमांशी .....
"मोटू ने खाया ....
पापा ने पकड़ा ,
मम्मी ने बनाया ...
बड़ा मज़ा आया। "
और
"चंद्रलोक की चीजें लेंगें,
दूध बताशे भाते हैं .....
चमक - चाँदनी में खेलेंगे ,
बड़ी सुहानी रातें हैं।"
